मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

वरुण का इमोशनल अत्याचार...

वरुण गांधी....फिल्हाल तो नाम ही काफी है....किसी खास इंट्रोडक्शन की जरुरत नहीं है....एक बात तो माननी पड़ेगी....वरुण गांधी ने अपनी पहचान बना ही ली......हां ये बात ज़रुर अलग है.....कि शायद वो खुद ही ये नहीं जानते होंगे....कि ये पहचान क्या उन्हें उनका भविष्य दिला पाएगी या फिर.....। ये हम सभी जानते हैं कि कुछ वक्त पहले तक वरुण की पहचान महज़ मेनका गांधी के बेटे के रुप में ही थी........लेकिन आज उनके घटिया और विवादास्पद भाषण को सुनने के बाद....कोने कोने में उनकी पहचान हो चुकी है.

लेकिन एक बात समझ नहीं आयी.......रासुका लगने से पहले भड़के-भड़के से नज़र आने वाले वरुण जेल से बाहर आने के बाद थोड़े कम भड़कीले नज़र आए....उनके भाषण में वो भड़काऊ पन तो था...लेकिन थोड़ा दबा-दबा.....और हां वरुण ने जेल से बाहर आकर जो पहला भाषण दिया.....वो फुल इमोश्नल देसी ड्रामे से लबरेज़ था...जिसमे वो एक बच्चे की तरह अपनी मां के पल्लू से भी चिपके नज़र आए.... लेकिन साथ ही वरुण ने मंच से एक मंजे हुए राजनीतिज्ञ की तरह पीलीभीत की जनता से गुहार लगाई ....कि उनकी मां के आंसुओं का जवाब जनता देगी....बहुत बढ़िया वरुण.....कर्म तुम करो....मां तुम्हारी रोए....और हिसाब किताब करे जनता....जनता इतनी भोली भी तो नहीं....जो यूंही तुम्हारी बातों में आ जाए........

वरुण गांधी...वो गांधी जिसकी जड़ों में झांकने पर पुरानी राजनीतिक गलियां तो नज़र आती हैं......लेकिन अफसोस.....वो गलियां.... वरुण को राजनीतिक गलियांरों में पांव रखने की हसरत को पूरा नहीं करा पाती......

वरुण के साथ जो हो रहा है.....उसे वरुण वक्त रहते समझ नहीं पा रहे हैं....और ये नासमझी कहीं उन्हें डुबो ना दे.....वरुण गांधी ने जिस वक्त ये भड़काऊ भाषण देकर उन्माद फैलाया था...उस समय बीजेपी ने बड़ा आश्वस्त करते हुए उनके ऊपर अपना हाथ रखा था.....लेकिन उसके बाद की उनकी रैली में सारा नज़ारा एकदम अलग और स्पष्ट था....भाषण के बाद वरुण को बीजेपी के पोस्टर ब्वाय के रुप में प्रोजेक्ट किया गया...नरेन्द्र मोदी के साथ साथ झंडो और बैनरो पर भी उन्हें जगह मिली..... ....लेकिन शायद वरुण जेल से बाहर आने के बाद बदले हुए हालात देख और समझ नहीं पाए....जेल से बाहर आने के बाद तुरन्त होने वाली रैली से हिंदुत्व को दर्शाने वाले सारे पोस्टर और बैनर्स गायब थे.....

हिंदुत्व के बहाने एक बार फिर बीजेपी ने उन्हें अपना मुखौटा बनाने की कवायद तो की...और हो सकता है कि आगे भी करे.....लेकिन वरुण गांधी के नामांकन के वक्त....बीजेपी के किसी भी बड़े नाम ने अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कराने में ही अपनी भलाई समझी....लेकिन इतने पर भी वरुण को अपनी खोखली नींव की पहचान उजागर नहीं हो पायी....वरुण या मेनका की पेशानी पर फिल्हाल तो बल पड़ते नज़र नहीं आते लेकिन अगर यही हालात रहे तो ये ज़रुर है कि वरुण कहीं राजनीतिक बिसात पर पड़े एक प्यादे के रुप में ना रह जाएं....फिल्हाल तो वरुण गांधी.....बीजेपी के गांधी के तौर पर प्रोजेक्ट किए जा रहे हैं और घूमघूमकर धुंआदार प्रचार भी कर रहे हैं.....हिंदुत्व का चेहरा बनते ....भगवा रंग में डूबे....

9 टिप्‍पणियां:

  1. किसी को भी एक तमाचा रसीद कर नाम कमाने का फैशन हो गया है.

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  2. मोहरा है वरुण गांधी....जैसे संजय दत्त ....

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  3. .....अब जब एक गाँधी पर मीडिया वाले मेहरबान हो और दूसरे पर ना हो....तो कोई कदम तो उठाना ही था। सो उठा लिआ..........रही बात यह पहचान कैसे बने...इस की किसी को परवाह भी कहां है............सभी इसी कोशिश मे लगे रहते हैं.....

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  4. हाय ये राजनैतिक पैतरेबाजियाँ !

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  5. rahul gandhi ko congress me naam kamane me baras lag gaye lekin varun gandhi ek bhadkau bhasan dekar naam kama liya....

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  6. वर्षों से भाजपा को एक अदद गांधी की तलाश थी जिसके कंधे पर रखकर बन्दूक दागी जा सके ! वरुण महज प्यादा हैं !

    अच्छा सामयिक लेख है !

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  7. ... प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!

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  8. संजय गांधी ने भी मुसलमानों की बस्तियां उजाड़ने का काम किया था, वरुण भी उन्‍हीं के वारिस हैं

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