शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

आडवाणी....अस्सी की उम्र और प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश.....आखिर क्यों....??

एक ज़माना हो गया....आडवाणी को राजनीति में अपने बाल सफेद करते ....आज आडवाणी किसी भी सूरत में प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं.....हालांकि आडवाणी की ये इच्छा बरसों से उनके सीने में दबी हुयी थी.....जो मौका नहीं मिलने पर एक टीस में परिवर्तित होती चली गयी.....आडवाणी के साथ विडंबना ये है कि वो अपनी उम्र के अस्सीवें दशक में हैं......और वो ये बात भी बखूबी जानते हैं.....कि अभी नहीं तो कभी नहीं......

क्योंकि कल किसी ने नहीं देखा....और कल के सपने की वजह से वो आज को खोना नहीं चाहते ....आडवाणी क्या चाहते हैं और क्या नहीं.....हालांकि इस बात से जनता को निजी तौर पर कोई सरोकार नहीं है.....सरोकार है तो महज़ उनके अब तक के हिसाब किताब से.....।

आडवाणी के प्रधानमंत्री बनने की हसरत का सफर बरसों पहले से ही शुरु हो जाता है..जब आडवाणी संघी थे.....संघ से शुरुवात करने वाले आडवाणी....बीजेपी की नींव रखने वाले नामों में शुमार हैं....हमेशा ही अटल बिहारी वाजपेयी का दांया हाथ बनकर रहने वाले आडवाणी ने अपनी पकड़ राजनीति में हमेशा ही मज़बूत बनाकर रखी....

ये बात अलग है कि आडवाणी का दामन बहुत ज्यादा दागी भी नहीं और बहुत पाक साफ भी नहीं.....वो आडवाणी ही थे.....जिनकी उमाभारती (फिल्हाल हाशिए की राजनीति में पड़ीं) के साथ खुशी का जश्न मनाते तस्वीरें पूरी दुनिया के अखबारों में छपी थी ....जब बाबरी मस्जिद को ढहाया गया था.....वो भी आडवाणी ही थे.....जो मंच से जयश्रीराम की हुंकार लगाते थे....और अपनी हाईटेक रथयात्रा के जरिए पूरे देश में घूम-घूम कर रामलहर का उन्माद फैला रहे थे और बीजेपी के लिए वोट बैंक मज़बूत कर रहे थे....बीजेपी उनका ये उपकार कभी नहीं भूलेगी....रामलहर के उन्माद के बाद ही आडवाणी की पूरे देश में तीखी और सक्रिय भूमिका निकलकर सामने आयी....वो जनता से सीधे तौर पर जुड़े और उनकी भावनाओं को बखूबी कैश करवाया......

आडवाणी पर कंधार कांड का भी दाग है...कुछ परोक्ष और कुछ अपरोक्ष रुप से इसका दंश वो आज भी झेल रहे हैं......इसके अलावा भी आडवाणी विवादों में एक बार फिर फंसे.....जब उन्होंने अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान अपने आप को सेक्यूलर बनाने की कोशिश में बैठे बिठाए संघ से दुश्मनी मोल ले ली...आडवाणी ने वहां जिन्ना की तारीफ में कसीदे पड़े औऱ इधर संघ ने उनसे हाथ खींच लिए......भारतीय राजनीति की बिसात पर संघ की ये खटास थोड़ी महंगी पड़ी और राजनाथ सिंह पार्टी अध्यक्ष नियुक्त कर दिए गए.......

इसके अलावा आडवाणी आज के वक्त के मुताबिक चलने में भी माहिर माने जाते हैं...उन्हें अपनी निजी ज़िंदगी को मीडिया के ज़रिए कैश करवाने में कोई गुरेज़ नही हैं...
आडवाणी फिल्मों के शौकीन हैं.....ब्लॉग लिखते हैं.....अपनी बेटी को सबसे करीब कहते है....ये सारी बातें मीडिया के ज़रिए ही बाहर आती रहती हैं...

आडवाणी बातें तो बड़ी-बड़ी करते हैं लेकिन रिटायरमेंट और उम्र के मसले पर चुप्पी साधते हैं....आज के युवा समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले नए चेहरों जैसे राहुल गांधी से मुकाबला करने को सिर्फ राजनीतिक प्रतिद्विन्दिता करार देते है.....

आडवाणी भाषण तो बहुत मुखर होकर देते हैं....युवा भारत में घुलना मिलना भी पसंद करते हैं पर कहीं ना कहीं शायद वो ये भूल जाते हैं....या समझ नहीं पाते....कि आज का भारत उन्मादी नहीं है.....वो भावुक होकर वोट नहीं देता है....उसे उन पुराने गड़े मुर्दों से कोई सरोकार नहीं है.....क्योंकि आज का युवा ज्यादा विकसित....प्रतिभाशाली और युवा भारत का प्रतिनिधित्व करता है....वो मतदान के गिरते प्रतिशत को भी नहीं समझ पाते ....वो ये भी नहीं समझ पाते कि वोट डालने के लिए पप्पू अभियान चलाने पड़ते हैं....जनता बदल चुकी है...।

आडवाणी आज बाकी राजनीतिक लोगों के काले धन को भारत वापस लाने का सवाल खड़ा कर हमदर्दी या एक रैशनल वोट चाहते हैं तो वो ये क्यों भूल जाते हैं कि वो खुद भी उसी जमात का ही एक हिस्सा है....जिसे हम मौकापरस्त बिरादरी के नाम से भी जानते हैं....और जिस हम्माम में सभी नंगे होते हैं.....आडवाणी ये क्यों भूल जाते हैं...कि जनता उनके दामन को पाक साफ मानेगी और उनकी लच्छे दार बातों में आकर ये सवाल नहीं उठाएगी....कि क्या स्विस बैंक में उनका कोई एकाउंट नहीं....क्या उन्होनें कभी काला धन नहीं कमाया.....क्या उन्होंने कभी वो काम नहीं किए...जिनके लिए राजनीति की गलियां बदनाम मानी जाती हैं.....

हालांकि राजनीति में सच्चाई की कोई कसौटी नहीं....फिर भी आडवाणी चाहते हैं कि जनता उन्हें चुनें....उन्हें अपना वोट दे....और उनकी बरसों पुरानी सुलगती इच्छा को मूर्त रुप देकर उन्हें हिंदुस्तान का तख्तोताज़ सुपुर्द करे........आखिर क्यों...??

9 टिप्‍पणियां:

  1. क्योंकि उनका सोचना है की जिस कुर्सी के लिए उन्होंने पूरी जवानी बिता दी इंतज़ार में ...अब यही तो मौका मिला है हसरत पूरी करने का ...पैसा कमाने का भरपूर मौका ...ये चांस भी गया तो क्या होगा ...कहने को वो भले ही खुद को गरीब साबित करें ...लेकिन अगर धूप में खडा कर दो तो सांस फूल जायेगी ...कारों में घुमते हैं ...सेब की तरह लाल पड़े हैं ...बच्चे एक से एक बढ़कर कॉलेज में पढ़े हैं ...सब खुशहाल हैं ...एक गरीब के हालात इतने खुशहाल कैसे हो सकते हैं ...एक गरीब तो अपने बच्चो को प्रारंभिक शिक्षा भी नहीं दे पाता ठीक से ...और ये खुद को कंगाल बताते हैं ....मजाक और सिर्फ मजाक ..जनता के साथ ...देश के साथ

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  2. यानी कि आपकी निगाह में सिर्फ़ आडवाणी ही प्रधानमंत्री पद का सपना देखने के दोषी हैं? नौ बच्चों के बाप और बिहार का कबाड़ा करने वाले लालू देख सकते हैं, शकर की कीमतों के नकली उतार-चढ़ाव से करोड़ों रुपये कमाने वाले शकर लॉबी सम्राट शरद पवार देख सकते हैं, मम्मी की उंगली पकड़कर चलने वाले राहुल बाबा भी देख सकते हैं, यहाँ तक कि कोई औकात न रखने वाले प्रकाश करात भी देख सकते हैं, सिर्फ़ आडवाणी ही नहीं देख सकते… यही कहना चाहती हैं न आप? यदि देश का युवा, भारत के इतिहास से कुछ नहीं सीखता तो इसमें आडवाणी दोषी कैसे हुए? संघ को गरियाने के "लेटेस्ट फ़ैशन" को भले ही आप अपनाये रहिये, लेकिन कभी संघ की शाखाओं में आईये और एक समर्पित स्वयंसेवक का जीवन देखिये, आपको बाकियों और उनमें फ़र्क नज़र आ जायेगा… (शायद)।

    @ अनिलकान्त जी - हवाला काण्ड में सिर्फ़ नाम आने पर इस्तीफ़ा देने और जब तक दामन साफ़ नहीं होता लोकसभा नहीं जाने का निर्णय लेने वाले एकमात्र राजनेता आडवाणी, यदि आपकी नज़र में भ्रष्ट हैं, और प्रधानमंत्री पद के बाकी तमाम दावेदार साफ़-ईमानदार, तब तो कुछ कहना बेकार ही है…

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  3. अनिल कान्त जी, 81 साल के आडवाणी अगर आज प्रधानमंत्री पद पर आसीन होना चाहते हैं तो वह इसलिये ताकी वो ऐसे पद पर पहुंच पायें जिसमें उन्हें देश को सही रास्ते पर ले जाने के लिये आथोरिटी मिले

    विपक्ष में बैठ के कोई पालिसी नहीं बनाता और जहां तक कमाने का मौका है अगर वो कमाना चाहते तो बहुत कमा लेते उनके जैसे इमानदार नेता आपको पूरी संसद में कम ही मिलेगा

    आपकी टिप्पणी से लगता है कि आपके पास पालिटिकल समझ का टोटा है या फिर आप का मंतव्य ही कलुषित है

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  4. Minister for Information and Broadcasting
    24 March 1977 – 15 July 1979

    Minister for Home Affairs

    19 March 1998 – 20 May 2004


    Deputy Prime Minister of India
    29 June 2002 – 20 May 2004

    itne time tak desh ki seva mein rahte unhone kitni aur kaun kaun si seva kar li ...sivaye apni party ko majboot karne ke ...

    are DEC 13 , 2001 ko Parliament attack inhee ke time par hua tha ...tab inhone kya kiya ...shanti shanti ...apne time par shanti shanti ki baat karte ho ...aur kisi aur ki sarkaar ho to seena fulate ho ....

    ab apni party ke vigyapan mein aap attack ke scene dikha rahe hain .....

    are aap ki party ne hi to lahor bus chalwayi ...shanti ki koshish ki ...uska nateeza kya nikla .....

    aur apni aay ka kya roop dikhate hain ...kuchh nahi hai ji pass ...are jab kuchh nahi hai to ye chamak damak ...kahan se aayi ...party par itna kharcha karte ho ...kabhi bina sarkar mein rahkar bhi desh ka kuchh bhala karo ..tab jane ki sarkar mein aane layak ho ...

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  5. क्या बात है मैडम एकतरफा विश्लेषण कर रही हैं। कभी आप कहती हैं जनता भावनाओं के आधार पर वोट नहीं देगी और दूसरी तरफ फिर वही पुरानी बातें उभार रही हैं आप लिखती हैं कि गड़े मुर्दों से जनता को कोई सरोकार नहीं फिर भी आप कंधार के भूत को कब्र से बाहर निकाल रही हैं। अब या तो आपको डर है कि जनता कहीं पुराने मुद्दों को भूल न जाये जैसे कंधार या संसद हमला या फिर आपको इस बात का डर है कि जनता को कहीं पुराने और भावनात्मक मुद्दे याद न आ जायें जैसे राम जन्म भूमि, रामसेतु या फिर पोखरन परमाणु विस्फोट। और रही बात रिटायरमेंट की तो जब तक कोई कानून न बन जाये राजनीति में रिटायरमेंट का तब तक सभी 100 साल तक राजनीति कर सकते हैं आखिर देश में 100 वर्ष से अधिक उम्र के लोग भी तो वोट डाल रहे हैं या फिर उन्हें भी वोट डालने से रिटायर कर दिया जाय।

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  6. आडवाणी ने सोचा होगा सब्र का फल मिठा होता है लेकिन ये भूल गये कि ज्यादा सब्र रखने पर फल सड भी जाता है :)

    वैसे राम के नाम को चूसने वाले आडवाणी प्रधानमंत्री बन पायेंगे इसमें संदेह है।

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  7. अनिल कान्त जी आडवाणी पर आपने आरोप तो लगा दिया। संसद पर हमले हुये,कांधार कांड हुये (जिसे शायद आप लिखना भुल गये या फ़िर आपको पता ही ना हो) लेकिन कभी आपने सोचा इस आतंकवादी कीड़े का जनक कौन हैं, कैसे किसी की इतनी हिम्म्त हो गयी कि हमारे संसदीय स्तंभ की तरफ़ आँख उठा कर देख लिया। सर, 50 साल जिस पार्टी ने हिन्दुस्तान पर शासन किया, उसी की बोई बबूल काट रहे हैं हम। लाहौर तक पहुँच चुकी सेना को आडवाणी ने नही वापस बुलाया था, किसी गृहमंत्री की बेटी को बचाने के लिये आतंकवादियों को आडवाणी जी ने नही छोड़ा था,कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में आडवाणी जी ने नहीं उठाया था, अफ़ज़ल को बिरयाणी आडवाणी जी नहीं खिला रहे हैं।

    अनिल जी, पुराणे मुद्दों को उठाने से कुछ नहीं मिलने वाला। आज अगर वर्तमान परिस्थितियों में देखे तो मनमोहन सिंह से हजार गुणे ज्यादा सक्षम प्रधानमंत्री साबित होंगे आडवाणी। कम से कम सत्ता का दो समान्तर केंद्र तो नहीं बनेगा।

    और तन्नू जी, एक लेखक की असल पहचान होती हैं,निष्पक्ष लेखनी। कभी आरोप लगाने से पहले पूरी तरह से जाँच लेना चाहिये। जहाँ तक बात रही संघ की तो, चीन युद्ध के समय खुद प्रधानमंत्री ने संघ के कार्य की प्रशंसा की थी। अगर ना विश्वास हो तो कांग्रेस से पुछ ले।

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  8. अच्छे ब्लॉगरों को व्यक्तिगत घात करने से बचना चाहिये। नहीं तो ब्लॉगरी और राजनीति में क्या अंतर रह जायेगा?

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