सोमवार, 7 दिसंबर 2009

'ACT NOW'.....n......COPENHEGEN....

एक्ट नाओ.....यही नाम है...उस एनजीओ का जिसके लाइव कॉंसर्ट में कल जाना हुआ था....इस कॉंसर्ट को कराने का मक़सद महज़ लोगो को पर्यावरण के प्रति जागरुक बनाना था....ऐसा नहीं लगता कि कई बार वो सारी चीज़ें हमें जगा कर दिखायी जाती हैं...जिन्हें हम जान कर भी आंख मूंद लेने का बहाना कर लेते हैं....और फिर कबूतर की तरह सोच लेते हैं कि खतरा टल गया....तो कल एक बार फिर से जागे और देखा कि ये खतरा कितनी हद तक आगे बढ़ चुका है....थ्री चियर्स फॉर कोपेनहेगन भी हुआ...फिर कोपेनहेगन पर विस्तार से निगाह दौड़ायी तो कुछ शान्ति सी नहीं मिली और इसीलिए इसे लिखा...........


लगभग हफ्ते भर तक अब कोपेनहेगेन बिज़ी हो गया है...वजह है..... जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में दुनिया भर से आने वाले अलग अलग राष्ट्रो के अध्यक्ष....उनके डेलिगेट्स अपने अपने तरीके से अपना अपना पक्ष रखने वाले हैं....जी हां इस बैठक में 192 देशों के करीब 15 हज़ार प्रतिनिधि और राष्ट्राध्यक्ष पहुंच चुके हैं.....और बराक ओबामा की उपस्थिति काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है...इस सम्मेलन की अगर गहनता के साथ स्टडी की जाए तो एक तस्वीर साफ तौर पर उभर कर सामने आ रही है......यहां ऐसा कुछ नज़र नहीं आ रहा..जिससे लोग दुनिया की भलाई के लिए सोच रख रहे हों.....बात बहुत साफ है अगर जलवायु परिवर्तन की ये तलवार सबके सर पर समान रुप से नहीं लटक रही होती...तो ये सम्मिलित सम्मेलन भी नही होता...हम सब सिर्फ अपने अपने हितों की ही रक्षा करना चाहते है......

अब जबकि जलवायु परिवर्तन की समस्या भौगोलिक सीमाओं को पार कर वैश्विक समस्या बन गई है...इसलिए इसका समाधान भी वैश्विक तौर पर ही खोजा जा रहा है...लेकिन क्या ये सच नहीं है कि अति विकसित देश ही इस समस्या के जनक हैं.... लेकिन समाधान में वो उन सभी देशों को शामिल करना चाहते हैं, जो न तो इस समस्या के लिए जिम्मेदार हैं और न ही किसी किस्म के परिणामों को सहने की क्षमता रखते है.....शायद इसीलिए आज इसे अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति का मुद्दा बना दिया गया है...

इस समस्या का कारण तलाशने के लिए बहुत ज्यादा अतीत में झांकने की ज़रुरत नहीं है....हम सब जानते हैं कि प्रकृति का नुक्सान,,,,नैसर्गिक संसाधनों का दोहन...अतिविकसित मह्त्वकांक्षाओं का प्रतिरुप ही है आज की ये ग्लोबल समस्या....चूंकि आज विकासशील देश भी एक उम्दा रफ्तार के साथ आगे बढ़ रहे हैं...इसलिए ग्लोबली और कलेक्टिवली इसके कारण भी तलाशे जा रहे हैं....क्योंकि अगर अभी नहीं तो कभी नहीं वाली स्थिति शायद आ चुकी है और इस समस्या का असर वैश्विक यानि कहीं कम तो कहीं ज्यादा....लेकिन असर पड़ेगा ज़रुर...ये तय है।
हालांकि कई मुद्दों पर इस सम्मेलन में चर्चा होने वाली है जिसमें पर्यावरण को बचाने के साथ साथ...संसाधनों का इस्तेमाल और हां धन...धन यानि कितनी धनराशि इसमें अपेक्षित है और कौन कौन से देश कितना एफॉर्ड कर सकते हैं...इस पर भी अवश्य ही चर्चा होगी....
हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि इससे पहले क्योटो प्रोटोकाल का क्या हश्र रहा है...क्योटो प्रोटोकॉल इस लिए इफेक्टिव नहीं रहा क्योंकि अमेरिका...यानि सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाला देश इसमें शामिल नहीं था....और ना ही इसे बाकी देशों के लिए मैनडेट्री बनाया गया था....
इस सम्मेलन के लिए भारत की चिंताएं अलग हैं और जायज भी हैं,लेकिन शायद चीन से भी बहुत कुछ सीखने की ज़रुरत है...अभी कुछ ही दिन पहले चीन ने पर्यावरण को सुधारने संबंधी चार कदमों की एक तरफा घोषणा करके...अपना दबाब कुछ हद तक कम करने की कोशिश ज़रुर की है....जिससे नैतिकता की आड़ लेकर वो अपना चेहरा ज़रुर ढक सके।
ये तय है कि यहां विकसित देश. अपनी जवाबदेही से बचने की कोशिश ज़रुर कर रहे हैं ..लेकिन साथ ही विकासशील देशों के शामिल होने से इस सम्मेलन की थोड़ी बहुत दिशा ज़रुर बदल सकती है.....ये सभी देश कहीं ना कहीं दबाब में हैं...जो अलग अलग तरह से जलवायु परिवर्तन का दंश झेल रहे हैं....चाहें बात अफ्रीकी देशों की हो...जहां रेगिस्तान अपने पांव पसार रहा है....या फिर पर्वतीय देश जहां ग्लेशियर पिघल रहे हैं.....कुछ ऐसे देश भी हैं....जहां बाढ़ का प्रकोप रहता है...चक्रवात पीछा नहीं छोड़ता.......और फिर मालद्वीव जैसे छोटे द्वीप भी हैं जो समुद्र तल से महज़ सात फीट ऊंचाई पर मौजूद हैं.....और समुद्र का जल स्तर बढ़ने पर सबसे पहले डूबने का खतरा भी झेल रहे हैं.....
कुल मिलाकर ये तो तय है कि इस सम्मेलन में ग्लोबली कई मुद्दों पर बातचीत हो सकती है...लेकिन ग्लोबली हम सब क्या कर रहे हैं..... हम सब की ज़िम्मेदारियां क्या बनती हैं......कितनी हद तक हम अपनी जिम्मेदारी निभा सकते हैं....क्या ऐसे कदम हैं जिन्हें उठाकर हम अपने पर्यावरण.....अपनी जलवायु....अपनी वन संपदा....अपने अस्तित्व को बचा सकते हैं...ये भी शायद उतना ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है जितना महत्व ये कोपेनहेगन सम्मेलन रखता है....शायद एक एक कर उठाया गया ये कदम हमारी आने वाली जैनरेशन को थोड़ा खुला आसमान और थोड़ी ज़मीन मुहैया करा सके............।।