शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

राजनीति और हम........

भारतीय राजनीति के महत्वपूर्ण दौरों मे से एक इस वक्त चल रहा है....महासंग्राम कहें....चुनावी पर्व कहें....समर का आगाज़ कहें या फिर लोकतन्त्र का महापर्व....

बहुत सारे लोगों ने बहुत सारे नाम दिए हैं.......लेकिन एक बहुत ही सहज और सरल बात सिर्फ इतनी है....कि ये वक्त है जम्हूरियत को पहचानने का ....एक आम...छोटे और इन प्रपंचो से दूर रहने वाले व्यक्ति की वोट की ताकत का.......जो किसी भी नेता की किस्मत का पालनहार होता है........

राजनीति को समझने के लिए इसके अंदर जाने की ज़रुरत नहीं पड़ती.....बाहर से भी ये उतनी ही गंदी नज़र आती है.....जितनी अंदर से है.....राजनीति अपने आप में अधूरा सा शब्द लगता है क्योंकि मुझे इसमें नीति जैसी कोई बात नज़र ही नहीं आती.....

हर बार चुनावी संग्राम छिड़ने से पहले....लगभग सभी दल.....अपना अपना मैनिफेस्टों निकालते है....कि वो जनता के लिए.....फलां-फलां काम करेंगे....रियाएतें देंगे......लेकिन हर बाऱ....लगभग हर बार....ये चुनावी घोषणा पत्र....चुनाव के निपटते ही ....कहीं विलीन होते नज़र आते हैं....वो सारे लोकलुभावन वादे जो हर पार्टी का नुमायन्दा करता है....कहीं भी नज़र नहीं आते.......

नज़र अगर कुछ आता है तो वो है सिर्फ मसल और मनी का पावर गेम......जिसके पास जितना ज्यादा पैसा.....जितने ज्यादा बाहुबली....समझो उसकी जीत की संभावना उतनी ही ज्यादा.....साथ ही अगर कैंडिडेट के साथ माफिया या फिर कोई और आपराधिक प्रकरण जुड़ा हुआ है.....तब तो समझ लो कि उसकी पौ-बारह......

आज सीना चौड़ाकर जो बाहुबली खड़े होते हैं.....उनकी कोई गलती नही है....गलती सिर्फ और सिर्फ उस ग़रीब और दबी कुचली मानसिकता वाली जनता की है.....जो जूते खाने की आदी है.....जो इन जैसे लोगों को अपना मसीहा मानती है.....जो अपनी ही ताकत से अंजान है और ...जिसने उन्हें उस कुर्सी तक पहुंचाया...जहां से वो दूसरों के सीने पर पांव रखकर खड़े होने की औकात रखते हैं......अगर ये सच नहीं होता तो आज डीपी यादव....मुख्तार अंसारी....बबलू श्रीवास्तव....अफजल अंसारी.... शहाबुद्दीन ..... तस्लीमुद्दीन....और आनन्द मोहन सिंह अपनी औकात जरूर पहचानते.....

राजनीति में भी हालांकि वक्त लगातार बदल रहा है.....आज प्रवीण तोगड़िया,विनय कटियार या साध्वी ऋतम्भरा का जादू फिर से नहीं चल पाएगा.....भले ही वरुण गांधी ने उन्माद को एक बार फिर भड़काया है....एक बार फिर से बीजेपी को हिंदुत्व का मुद्दा दिया है.....लेकिन फिर भी हालात थोड़े से जुदा हैं.....आज एक बार फिर से राम लहर का उन्माद नहीं फैलेगा.....चाहें नरेन्द्र मोदी आएं या फिर आडवाणी.....उस चुनावी जनसभा में लोग नारे ज़रुर लगा सकते हैं.....लेकिन वोट की गारंटी कोई नही देता....और ये बात सबकी समझ मे भी आ रही है......

आज का भारत ज्यादा पढ़ा-लिखा है.....आज का भारत ज्यादा उन्मुक्त है....समझदार है....आज वो भारत नहीं है जहां महिलाएं बमुश्किल अपना मुकांम पाती थीं.....आज के हिंदुस्तान में सिर्फ हिंदी,हिंदु,हिदुस्तान का नारा वाजिब नहीं है....क्योकि आज भारतीय बाहर भी अपना परचम लहरा चुके हैं.......आज हम चांद तक पहुंच सकने मे फक्र महसूस करते हैं......

आज के भारतीय वरुण गांधी पर हंस सकते हैं....क्योंकि उन्हें वरुण गांधी के भीतर दबा फ्रस्टेशन नज़र आता है.....जो विरासत में गांधी नाम मिलने के बावजूद कुछ नहीं मिलने और कर सकने का मलाल दर्शाता है.......साथ ही दिखाता है कि बीजेपी एक बार फिर अवसरवादिता का खेल खेलने को आतुर है.....

अगर आज के भारत में बदलाव नहीं आया होता तो आज ...चिंदंबरम....नवीन जिंदल.....और आडवाणी के ऊपर जूते-चप्पल नहीं पड़े होते....यही वो आक्रोश है जो नेताओं के भीतर एक डर को पैदा कर रहा है.....कि आज अगर जूते चप्पल पड़ सकते हैं तो फिर कल क्या हो सकता है.......

और हां जनता में नेताओं के प्रति नॉन सीरियस एटीट्यूड भी आ चुका है....क्योंकि जब राबड़ी देवी चुनावी मंच से गाली गलौज करती हैं.....तो हमें हंसी आती है....क्योंकि इन सब बातों से सिर्फ उनका बैकग्राउंड और अवसाद नज़र आता है....इसीलिए आज नरेन्द्र मोदी के बुढ़िया-गुड़िया प्रकरण के बाद सबको उम्मीद थी कि शायद अब इस क्रम में पुड़िया भी जुड़ जाए.....

नेताओं को अगर लगता है कि चुनाव में ग्लैमर का तड़का लगाएंगें तो गलतफहमी दुरुस्त कर लें क्योंकि एक सुनील दत्त के अलावा कोई और ऐसा नाम अब तक नज़र नहीं आता जिसने ईमानदारी के साथ कुछ किया हो.....(दक्षिण को छोड़कर)...जिस वक्त गोविंदा ने राम नाईक को हराया था तो बड़ी उम्मीदें थीं....वहां की जनता की.....कि विरार का ये छोरा ज़रुर जनता की सेवा करेगा.....लेकिन गोविंदा जी भी फिल्हाल नोट प्रकरण में अपनी साख गंवा चुके है.......

किसी भी गलतफहमी में रहने वाले ये नेता भूल जाते हैं कि लोग इन्ही की वजह से आज वोट डालने आना....अपना टाईम वेस्ट करना समझते हैं.....आज लोगों को जागरुक करने के लिए अवेयर नेस प्रोग्राम चलाने पड़ते हैं.....युवाओं को आकर्षित करने के लिए...पप्पू का सहारा लिया जाता है....आखिर क्या है ये सब...

तो अलग अलग तरह के रंग देखने को तो मिलते हैं इस बेरंग और गंदी राजनीति में लेकिन.....किसी भी नेता से इंद्रधनुषी भविष्य की उम्मीद करना कल की तरह आज भी बेमानी लगता है......कोई भी पार्टी ऐसी नहीं जिसके दामन पर दाग नहीं लेकिन एक दूसरे पर कीचड़ उछालने में आज भी किसी को कोई गुरेज़ नहीं....

3 टिप्‍पणियां:

  1. हम अब इन बातों में अपना दिमाग खराब नहीं करते. वोट देने जरूर जायेंगे और लोगों को भी उकसायेंगे.

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  2. पढ़ले लिखे लोगो को सामने आना होगा ,भागीदारी करनी होगी ओर बुद्दिजीवियों को भी खामोशी तोड़नी होगी .....अगर हमें कोई दिशा प्राप्त करनी है तो

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  3. शायद राजनीतिज्ञों की नीचता के कारण ही आम आदमी इससे जुडने में रूचि नहीं लेता।

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    अभिनय के उस्ताद जानवर
    लो भई, अब ऊँट का क्लोन

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