शनिवार, 4 अप्रैल 2009

राहुल/वरुण गांधी.......

इस वक्त अखबारों में औऱ टीवी की हेडलाइन्स में अगर लोकसभा चुनाव के अलावा कोई सुर्खियां बटोरता नज़र आ रहा है….तो वो हैं....राहुल गांधी और वरुण गांधी....हालांकि माहौल पूरी तरह से चुनावी है.....इसलिए ये नहीं कह सकते....कि ये दोनों चुनाव से अलग अपनी पहचान की वजह से सुर्खियों में हैं....

बल्कि हम ये कह सकते हैं कि चुनाव की वजह से ही इन दोनों के पॉजिटिव और निगेटिव पहलू सामने आए...और हमें इनकी चर्चा करने पर मजबूर होना पड़ा......राहुल गांधी....दिखने में पढ़े-लिखे...शांत सौम्य....व्यक्तित्व के धनी लगते हैं....बोलते भी अच्छा हैं.....विकास की बातें करते है.....धुंआदार प्रचार कर रहे हैं......कभी संसद में कलावती का मुद्दा उठाते हैं तो कभी विदर्भ के किसानों की बात करते करते गमगीन हो जाते हैं....अब ये बात अलग है कि अपनी सभाओं में अपनी बातो और व्यक्तित्व की वजह से भीड़ तो दमदार जुटा लेते हैं.....लेकिन वोट बटोर पाने की ताकत आने में अभी भी थोड़ा कमज़ोर लगते हैं.......राहुल गांधी अपने पिता राजीव गांधी की ही प्रतिमूर्ति नज़र आते हैं....जिनके पीछे उनकी मां एक मजबूत आधार लिए खड़ी हैं........जो उन्हें विरासत में अमेठी भी देती हैं......और उनके हर कदम के साथ चलती हैं.....उनके सुनहरे भविष्य के लिए...

अब अगर हम बात करें वरुण गांधी की....तो यहां ये कहना ज्यादा उचित होगा कि वरुण गांधी का व्यक्तित्व अब तक ऐसा नहीं रहा कि उन्हें गांधी का सरनेम हटाने के बाद कोई पहचाने भी.......वरुण थोड़ा बहुत पोएट्री करते है और अब तक अपनी मां मेनका के आवरण से बाहर खुद से कोई राजनीतिक पहचान नहीं बना पाएं है.......वरुण और राहुल की उम्र में करीब दस सालों का फर्क लेकिन एक चीज़ जो दोनों में कॉमन है वो है गांधी शब्द.......राजनीति में गांधी शब्द का बड़ा महत्व है.....मैं बचपन से देखती,सुनती आयी हूं....लेकिन वरुण गांधी आज तक अपनी जगह या अपनी पहचान खुद से कभी नहीं बना पाए.....विरासत में अगर राहुल को अमेठी मिली तो वरुण को भी पीलीभीत.की सौगात दी गयी......हां लेकिन ये बात ज़रुर है कि राहुल की तरह वरुण को गांधी परिवार का वो हक नही मिला जिसके वो राहुल के साथ बराबर के हिस्सेदार है......

वरुण गांधी ऐन चुनावों से पहले अपने खतरनाक इरादों....मंसूबो और सनसनीखेज़ बयानबाज़ी के कारण चर्चा में आए है....लेकिन वो ये भूल गए कि दंगो में अपनों को खोने के बाद देश के हर हिस्से का आम हिंदुस्तानी इन सभी चीज़ों का अभ्यस्त है.....वो आज अचानक आग-बबूला नहीं होगा....अचानक ही उसके अंदर आग का शोला नहीं भड़केगा......क्योकि वरुण से पहले भी विनय कटियार......प्रवीण तोगड़िया....और नरेन्द्र मोदी जैसे दिग्गज अपनी अग्नि वर्षा से हमें इन बातों का अभ्यस्त बना चुके हैं.....

जो सवाल मेरे मन में उठ रहा है वो सिर्फ इतना है कि वरुण गांधी ने आखिर ऐसा क्यों किया.....सत्ता की भूख....अपना हक ना मिलने का फ्रस्टेशन.....या ऐन चुनावों से पहले सांप्रदायिकता का माहौल बनाके.....सस्ती पब्लिसिटी बटोरना.था ...और या कही ऐसा तो नहीं.....कि वरुण को इस वक्त मोहरा बनाके राजनीतिक षडयन्त्र की बिसात बिछायी गयी हो......वजह चाहे जो भी हो .....वरुण ने अपनी छीछालेदर खुद ही की है.....क्या वरुण को ये एहसास नहीं होगा.....कि वो जिस आग को भड़का रहे थे.....जिन हिंदु-मुसलमानों को अपने वोट और बाण के ज़रिए बांटना चाह रहे थे....वो इनकी बातों में आकर एक बार फिर पागल नहीं बनेगें......जिस गीता पर हाथ रखकर वो कसम खाने की बात करते हैं कितने लोग है जो उनकी इस कसम का विश्वास करेंगे.......कौन सी आबादी है जो वरुण को पुचकारेगी और कहेगी कि हां हम तुम्हारे साथ है....मारो-काटो.....क्या वरुण को दिखता नही होगा...अपना भविष्य.....या दूरदर्शिता के अभाव में वो महज़ एक प्यादा बनकर रह गए.....

या फिर वो ये सोच रहे हैं कि हम लोग इतने कमजोर हैं कि कोई भी आकर हिंदु मुसलमानों का मंत्र पढ़कर आग फूंके और हम सब मजबूर होकर जलना शुरु कर दें........वरुण गांधी ने क्या सोचा होगा....कि इन भाषणों के बाद अगर हिंदु मुसलमान वोट बंट भी जाएंगे तो क्या हिंदू वोट एकजुट होकर बीजेपी को मिल जाएंगे....फिर एक सवाल और भी लाजिमी है कि क्या पढ़े लिखे युवा वरुण ये भूल गए कि आज का भारत पढ़ा लिखा और ज्यादा समझदार है.....चंद लोगो की जुटी हुयी भीड़ उनके उन्माद में पागल होकर भले ही नारेबाज़ी करले......लेकिन मीडिया के माध्यम से देश भर में वरुण की छवि ताश के पत्तों की तरह भरभरा कर गिर पड़ेगी.......या फिर ये भी हो सकता है कि अपने पिता संजय गांधी के पद चिन्हों पर चलने की कोशिश करते वरुण अपनी छवि एंग्री यंग मैन या हिंदुओ के रक्षक की बनाना चाह रहे हों.........

मुसलमान आबादी को निशाना बनाकर या ध्रुवीकरण की सत्ता का खेल खेलने वाले क्या ये नहीं जानते कि आज का भारत बदल चुका है...आज वो भारत नही जिसे रामलहर चलाकर उन्माद में बाबरी मस्जिद तुड़वा दी गयी.....आज के भारत का चेहरा बदल चुका है.....औऱ शायद राहुल गाधी को वो बदलाव की बयार की आहट पहले ही आ चुकी थी इसलिए ही राहुल विकास की बड़ी बड़ी बातें करते हैं........भले ही विकास हो या ना हो.....लेकिन लोगो के बीच में अपनी छवि ज़रुर बनाते हैं.....लेकिन वरुण एक ही खानदान के होते हुए भी वो खुद अपनी ही ज़ड़े खोखली करते नज़र आ रहे हैं.....शायद वो ये नही समझ पा रहे कि इस सांम्प्रदायिकता की राजनीति करके वो चंद सुर्खियां तो बटोर सकते है लेकिन अपना भविष्य सुनहरा नहीं कर सकते .........बारहाल सत्ता की दौड़ में तो दोनों ही गांधी है.....बाकी वक्त बताएगा कि हमारी जनता आज भी भावनाओं के उन्माद में बहती है या फिर बढ़ते भारत की तस्वीर बनाने की कूवत रखती है......

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