मंगलवार, 24 मार्च 2009

भगवान..........??

मैं भगवान को नहीं मानती.......... मतलब यहां-वहां.....घर,मंदिर, गली, चौराहों, पीपल, बरगद की छांव तले मौजूद असंख्य देवी-देवताओं की मूर्तियों को मैं नहीं मानती...हालांकि मेरे परिवार वाले बिल्कुल किसी भी पारंपरिक हिंदुस्तानी ब्राह्मण की तरह ही परंपराओं का निर्वाह करने वाले....व्रत,पूजा,दान,धर्म,त्यौहार का पालन करने वाले ही हैं....लेकिन मेरी सोच उनसे थोड़ी अलग है.....किसी भी आम धार्मिक और पारंपरिक खानदान की तरह मेरा भी खानदान है जिसमें पीढ़ियों से लोग अपनी परंपराओं को निभाते चले आ रहे हैं.....बचपन में मुझे भी यही संस्कार दिए गए और मैं बाकी लोगो की तरह ही पूर्णिमा को होने वाली कई सत्यनारायण की कथाओं की सहभागी रही हूं ...कई नवरात्रि,,,शिवरात्रि,,,जन्माष्टमी आदि जैसे धार्मिक उत्सवों की भी...लेकिन मुझे भगवान के अस्तित्व पर शक होता है......।।

पर धीरे धीरे जैसे जैसे मैं अपने आसपास के सामाजिक ढांचे को समझने लगी....मुझे समझ आने लगा कि किस तरह से समाज को काबू में करने और रुल करने के लिए,,,,लोगों को डराकर रखने और उन पर शासन करने के लिए......उन्हें कुछ निश्चित दायरो में बांधकर रखने के लिए धर्म को ढाल बनाया गया उसे पैदा किया गया होगा। हिंदु धर्म मे कहा जाता है कि चौरासी करोड़ देवी-देवता हैं मुझे एक साथ कहीं वो नज़र नहीं आए ना किसी मंदिर में ना किसी किताब में....सर्वाधिक पूजे जाने वाले देवता ब्रहमा,विष्णु,महेश और गणपति लेकिन आज तक गणपति के सर का राज कोई नही बता पाया कि ह्यूमन बॉडी के ऊपर हाथी का सिर कैसे लग सकता है...और अगर दलील ये दी जाए कि वो भगवान हैं तो फिर भगवान का सर कट कैसे सकता है और अगर कट भी गया तो फिर उनका वोही सर क्यों नहीं लगाया गया....और भगवान को इन जानवरों की सवारी क्यों करनी पड़ती है...जैसे चूहा,उल्लू,गरुड़,हाथी,सिंह.... मुझे कोई मेरे सवालों का जवाब नही देता......

कई चीज़ें मुझे कॉंट्राडिक्टरी भी लगती हैं....जैसे ब्राह्मणों के लिए मांस-मदिरा का सेवन निषेद्ध कहा गया है....लेकिन वेद-पुराण,ग्रन्थों मे देवताओं के सोमरस का महिमामंडन किया जाता है......इसके अलावा श्रीराम के आगे मर्यादा पुरुषोत्तम लगाया जाता है लेकिन वो मुझे किसी आम राजा से ज्यादा कभी नज़र नहीं आते....राजपाट चलाने के अलावा उन्होंने ऐसा क्या किया जिसके लिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम बोला जाए.......जो इंसान अपनी पत्नी की इज्जत नही कर सकता....अपने बच्चों को बाप का हक़ नहीं दे सकता वो काहे का राजा और काहे का भगवान.....

इसके अलावा और भी बहुत सी बातें है जो मुझे कन्फ्यूज़ करती हैं....कहते हैं कि भगवान अन्तर्यामी होते हैं.....इसका मतलब उन्हें पहले ही पता चल जाता है....फिर हमारी पौराणिक कथाएं....राक्षसों के अत्याचारो की कहानियां क्यों सुनाती हैं....क्यों ऋषि मुनियों की हत्याएं दिखायी जाती है......इस हिसाब से तो सब कुछ बहुत सुन्दर होना चाहिए था.....और अगर ये कहा जाए कि सृष्टि कुछ नियम-कायदों से चलती है...जो होना है वो तो होकर ही रहता है......तो फिर इतनी मारा-मारी और उधेड़बुन क्यों......क्यों लोग कतारों मे लग लग कर विद्या,बुद्धि,धन,औलाद,सफलता, मांगने जाते हैं.......
भगवान तो एक ही हैं....हमारे अंदर भी हैं......ऐसा कहा जाता है.....फिर तिरुपति औऱ शिरडी क्यों सबसे धनवान मंदिर माने जाते हैं.........मेरी गली के बाहर वाला मंदिर क्यों उतना ही महत्व नहीं ऱखता जितना वैष्णों देवी का मंदिर....

भगवान इतने ही अंतर्यामी है तो ईराक क्यों जलता है....तालिबानी कैसे इतने निरंकुश हो सकते हैं.....अलकायदा का बुरा क्यों नहीं होता......इंसानो के अंदर दुर्भावनाएँ क्यों आ जाती हैं...एक दूसरे के खून के प्यासे क्यों हो जाते है....क्यो नही भगवान जादू कर देते...और क्या भगवान को दिखता नही कि धर्म को बेचने वाले भगवान के नाम का चोला पहनकर.....कभी आसाराम तो कभी सुंधाशू जी महाराज..तो कभी किरीट महाराज तो कभी कोई सी महिमामयी माता....बनकर खुद तो अरबों की संपत्ति बटोरते है और लोगों को प्रवचन देते हैं....लोभ मत करो....मुझे सिर्फ ये लोग बेहतरीन बिज़नेस माइंडेड नज़र आते हैं....IIM के बच्चों को इनकी क्लासेस ज़रुर अटेड करनी चाहिए....इन्हे सबसे अच्छी तरह पता है कि आम जनता की नब्ज़ कहां कमज़ोर है कहां पकड़नी चाहिए.......और अब तो ये भी स्टेटस सिंबल में कंवर्ट हो गए हैं जिसके पास जितना पैसा उतना ही वो फलां महाराज या मां के करीब....आरती करो.....पांव छुओ....आशीर्वाद लो.....

मेरा सवाल ये भी है कि अगर भगवान कण-कण में है तो हमें इन धार्मिक चैनल्स की जरुरत क्यों पड़ती है.....क्या ये दुनिया पाखंड का ढोंग करती है या बस यूंही करते है वाली किसी लकीर के पीछे आंखे मूंदे चली जा रही है...राम के प्रति अन्ध भक्ति दिखाओ....बाबरी मस्जिद गिरा दो....गंगा भी मौजूद है सारे पापों को धोने के लिए.....बहुत अजीब लगता है ये सब....ऐसा जैसे किसी का खून कर दो....बलात्कार करो फिर गंगा नहाओ....पाप कटेंगे....

मैने किसी धर्म को ये कहते नहीं सुना कि लूट खसोट करो....मारो काटो,चोरी करो,बलात्कार करो फिर इतनी धार्मिक सोसायटी में ये कौन सी फसल है जो इन कामों को अंजाम देती है.......या हम क्यों नहीं स्वीकार करते कि हममें में से ही ये लोग होते है.....जो वहशत फैलाते है....जानवर बन जाते है लेकिन ढोंग करना नहीं छोड़ते....पांचो वक्त के नमाज़ी बनो.......कट्टरता का पालन करो..........महिलाओं की बेइज्जती करो और तालिबानी कहलाओ.....कितना भी पाप क्यो ना हो गया हो....चर्च में जाओ पादरी के सामने कन्फेस करो और सब खत्म......सबकुछ इतना सस्ता क्यो नज़र आता है....

गुजरात का गोधरा कांड हो या फिर उड़ीसा का कंधमाल.....कई लोगों ने दूसरों की ज़िंदगिया उजाड़ कर अपने सीने को चौडा़ किया....धर्म को बेहतरीन तौर पर इस्तेमाल किया गया.....राजनीतिक दल कहां पीछे है.......सौगन्ध राम की खाते हैं...मंदिर वहीं बनाएंगे......कब का नारा है ये....आजतक इसी के पीछे वोट मांगती है बीजेपी.....बीएसपी भी इसी के नक्शेकदम पर है....हाथी नहीं गणेश है.....ब्रहमा,विष्णु,महेश है......क्या आम धार्मिक इंसान की धार्मिक आस्था इतनी सस्ती है कि ये लोग उसका मनचाहा उपयोग कर अपने स्वार्थ पूर्ति कर सकते हैं औऱ एक बार नहीं बार –बार....क्यूं भई क्यूं....कब तक हम यूंही धर्म के नाम पर अपनी भावनाओं का बलात्कार और चीरहरण होने देंगे.......और क्यों भगवान(अगर कहीं है तो) आकर बचाते नहीं इस दुनिया को.........

23 टिप्‍पणियां:

  1. शर्मा और अब एक बिंदी के साथ जोशी भी... और बातें या ख़ुदा काफिरों जैसी

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बेबाक पोस्ट लिखी है और ये सही है की आपने जो प्रश्न पूछें हैं उनका जवाब कोई सीधी तरह से नहीं दे सकता....क्यूँ की शायद इन प्रश्नों का कोई जवाब है ही नहीं किसी के पास....काश ये प्रश्न सब के दिमाग में उठें तो शायद दुनिया से अराजकता स्वयं ही ख़त्म हो जाये...ज़िन्दगी अधिक सरल हो जाए...
    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ख़ूब! वैज्ञानिक सोच। शानदार अभिव्यक्ति।
    हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. जोशी जी , कुछ इस तरह की पोस्ट मैंने भी कुछ पहले लिखी थी पर कोई समर्थक ना मिला । मैं कुछ इसी तरह के सवाल उठाये थे जिसका जवाब लोगों के पास नहीं । कुकर्म करते रहे भगवान जपते रहो यही सार है कुछ मिलाकर । आपकी पोस्ट इसका विस्तार स्वरूप प्रस्तुत कर रही है । अच्छा लगा तार्किक सवालों को देख ।

    जवाब देंहटाएं
  5. bahut sahi sawal uthaye hai aapne,inka jawab shayad koi na de sake,humapne swarth ke anusaar is ishwar ki shakti ko mante ya nahi mante hai.khair sab ki soch alag,mano to ishwar na mano to pathar.

    जवाब देंहटाएं
  6. आदमी ओर सिर्फ आदमी जानता है कब किस चीज का इस्तेमाल अपने स्वार्थ ओर हित के लिए करना है .धर्म तो सिर्फ गोटी है....पासा आदमी फेंकता है

    जवाब देंहटाएं
  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  8. आपने जो भी बाते लिखी हैं उसमे से कितनी भगवान ने की हैं ?कोई भी नहीं न. यह सब गलत सलत करने वाला भी इंसान हैं,और ईश्वर के नाम पर लड़ने वाला भी इंसान हैं .ईश्वर हैं और यत्र तत्र सर्वत्र हैं ,जिस रूप में हम उसे देखे हमें वह मिलता हैं ,जिस धर्म में उसे चाहे वह हमारा साथ देता हैं .रही बात तिरुपति और शिर्डी की तो के मन को जहाँ शांति मिलती हैं ,सुकून मिलता हैं वहां विश्वास और बढ़ जाता हैं .हाँ यह भी बात हैं की ईश्वर भी चैतन्य शक्ति हैं ,कुछ जगह उसकी साक्षा होती हैं.

    और ईश्वर हमें सद्ज्ञान देता हैं सन्मार्ग देता हैं ,लेकिन हमारा पूरा जीवन ठीक करने का जिम्मा उसका नहीं हैं ,अगर उसने ही सब कुछ करना था तो हमें मन तन प्राण चेतन ,बुद्धि देकर मनुष्य क्यों बनाया होता ?

    आज आपके मन में जो प्रश्न हैं ,वह किसी के भी मन में उठ सकते हैं ,लेकिन एक बार उस पर दिल से विश्वास कीजिये,एक बार उसके होने में श्रद्धा jataiye ,आपके सब प्रश्नों का निराकरण स्वत:ही हो कयेगा .जीवन में जल्द ही बहुत सी सकारात्मक चीजे होंगी भी और सकारात्मक बातें आस पास दिखाई भी देंगी .
    shubhkamnao ke sath

    जवाब देंहटाएं
  9. आपने बहुत सारी चीजें मिलकर ऐसी खिचडी पका रखी है मन में कि कन्फ्यूज होना अत्यंत स्वाभाविक है....यदि सचमुच आप इस विषय में अधिक जानने को उत्सुक और गंभीर हैं तो इन विषयों से सम्बंधित अच्छी पुस्कतें पढिये.
    राधिका जी की बातों को ध्यान से पढिये,बहुत से प्रश्नों के उत्तर उनकी टिपण्णी में निहित हैं.....

    जवाब देंहटाएं
  10. मुझे मालूम था कि जो लोग धार्मिक हैं...उन्हें ये सब बुरा लग सकता है..यहां मैने जो कुछ लिखा है..वो सारे सवाल कई सालों से मेरे अंदर थे...भगवान का नाम आते ही...लोगो को ये लगता है जैसे सब उसके खिलाफ बोला जा रहा है...आप लोग क्यों ये नहीं देख पा रहे कि उसी धर्म के नाम पर कितना बिज़नेस करते है...स्वामीनारायण मंदिर भूल गए क्या सब...जहां साधु-सन्यासियों की ब्लू फिल्म सारे चैनल्स पर आईं थीं...इतने बड़े-बड़े धर्म के ठेकेदार धर्म के नाम पर पैसे बना रहें है...क्यों...ऐसा क्या सिखाते है...क्या बताते है...जो जनता को नहीं पता...रही बात मन की शान्ति की तो क्यों घर बैठे शान्ति नहीं महसूस कर पाती दुनिया...क्यों तिरुपति या अमरनाथ जाकर ही शान्ति मिलती है...मैने जो कुछ लिखा है वो ये नही लिखा है कि ये सब भगवान करवा रहे हैं...लेकिन होता सब धर्म के नाम पर है...क्यों नहीं जागने की कोशिश करते आपलोग...कब तक अपनी श्रद्दा और आस्था की पट्टी बांध रहेंगे...तालिबानी अगर अत्याचार करते है तो कुरान और अल्लाह के नाम पर करते है...कंधमाल में अगर नन के साथ बलात्कार हुआ तो वहां बजरंगियो का नाम सामने आया...धर्मांतरण का आरोप लगाया गया थी...तो क्या है ये सब..
    भगवान अगर आज इतना सस्ता नहीं होता तो मायावती और बीजेपी एक बार फिर भगवान का सहारा लेकर चुनाव जीतने की कवायद में ना लगे होते...और अगर आपको ये पोस्ट खिचड़ी नजर आ रही तो वो इसलिए क्योंकि यहां एक साथ इतने सारे सवाल नज़र आ रहे है...

    जवाब देंहटाएं
  11. रंजना जी ने ठीक ही कहा सचमुच आपने खिचड़ी पका रखी है और वास्तव में आप क्या कहना चाहती हैं मैं तो नहीं समझ पाया। राम की आलोचना आपने की परंतु क्या आपको याद नहीं है कि यही राम शबरी के आश्रम में जाकर उनके झूठे बेर खाते हैं बाली को अनुज की पत्नी के साथ दुर्व्यवहार करने पर दण्ड देते हैं। माता कैकयी द्वारा वनवास भेजे जाने भी पर उन्हीं से सबसे ज्यादा प्यार करते हैं। इसके अलावा आपने कहा कि दुनिया में बहुत सारे गलत काम हो रहे हैं और कहां हैं भगवान तो क्या आपको उन्होंने दुनिया में झक मारने के लिये भेजा है यदि सब कुछ भगवान को ही करना था तो फिर इंसानों की इस दुनिया में क्या आवश्यकता है। अब आप कहेंगी कि आपके मुंह में रोटी भी ईश्वर भी डाल दे तो फिर उसने आपको दो हाथ क्यो दिये हैं? दरअसल आपने सिर्फ बुराईयों को देखा है परंतु भलाईयों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है आप धर्म ईश्वर में सिर्फ बुराईयां ही ढूंढ रही है काश आप अच्छाईयां भी देख पाती!

    जवाब देंहटाएं
  12. इस प्रकार का मंथन आवश्यक है. अमृत भी ऐसे ही मंथन के बाद मिला था.

    जवाब देंहटाएं
  13. धर्म गलत कैसे हो सकता है ? ... आज उसे गलत ढंग से परिभाषित किया जा रहा है ... अतिवृष्टि और अनावृष्टि की मार से बर्वाद हुए फसल की क्षतिपूर्ति करने के लिए यदि समय समय पर फलाहार के बहाने बनाए गए तो गलत क्‍या था ? ... पर्व त्‍यौहारों पर लाखों की भीड को नदी में स्‍नान कराने और नदी के तल से सबों को एक एक मुट्ठी निकालने के क्रम में नदियों की गहराई को बचाया जाता रहा तो इसमें गलत क्‍या था ... तात्‍कालीक फल न प्रदान करने वाले पीपल और बट के पेडों के नष्‍ट होने के भय को देखते हुए और उसके दूरगामी फल को देखते हुए उन्‍हें धर्म से जोडा गया तो गलत क्‍या था ... संबंधों का निर्वाह सही ढंग से हो सके ... इसके लिए एक बंधन बनाया गया तो इसमें गलत क्‍या था ? ... मन में जो आए ... वह लिख देना ही पर्याप्‍त नहीं होता ... सही व्‍याख्‍या तभी की जा सकती है ... जब आपने उस विषय विशेष का गंभीर अध्‍ययन कर रखा है ... पुराने सभी नियम पुराने युग की जीवनशैली के अनुरूप थे ... भले ही आज उनका महत्‍व कम दिखाई पडे ... या उसमें कुछ सुधार की गुजाइश हो ... मैं विचारों से धार्मिक हूं ... क्‍योंकि मेरे अंदर वे सभी गुण हैं ... जो धारण किए जाने चाहिए ... पर मैं परमशक्ति में विश्‍वास रखती हूं ... बाह्याडंबरों में नहीं ... एक ज्‍योतिषी होने के बावजूद पूजा पाठ में बहुत समय जाया करने पर भी मेरा विश्‍वास नहीं ... और न ही परंपरागत रीति रिवाजों को ही हूबहू मानती हूं ... पर मैने भगवान से जो मांगा है ... वह मिला है ... स्‍वार्थी होकर अभी तक कुद भी नहीं मांगा ... एक भगवान पर विश्‍वास रखों तो ... कितना भी दुख विपत्ति आ जाए ... असीम शांति मिलती है ... हमेशा लगता है ... भगवान हमारे साथ हैं ... वैसे इस बात पर भी विष्‍वास रखना चाहिए कि प्रक;ति के नियमानुसार ही काम होते हैं ... लाख भगवान की पूजा कर लो ... कुछ बदलने वाला नहीं ... मेरा एक आलेख पढे ... पता है http://sangeetapuri.blogspot.com/2009/03/blog-post_25.html

    जवाब देंहटाएं
  14. मुझे तरस आता है उन पर

    जिन्हे सलीका नहीं है अहसान करने का

    कहते हैं कि गर खुदा है तो सामने क्यूं नहीं आता

    जवाब देंहटाएं
  15. मैं भगवान को नहीं मानती..........
    पर भगवान तो कहते हैं - मान न मान, मैं तेरा मेहमान:)

    जवाब देंहटाएं
  16. भगवान के नाम पर इतना एक्साएटेड होने के बजाए...इस लेख को ध्यान से पढ़ा होता और इन सवालों का जवाब खोजने में ज़रा सी भी सहायता की होती तो शायद ज्यादा बेहतर होता...धर्म का नाम सुनकर इतना उत्तेजित होने की या किसी पर तरस खाने जैसे विचार प्रकट करने की ज़रुरत नहीं है...क्योंकि ये पोस्ट किसी पर विचार थोपने के लिए नहीं है...और ना ही किसी बाध्य किया जा रहा है कि जैसा मैं सोचती हूं....आप भी वैसा ही सोचें...इन सवालों के जवाब ना कल मिले थे और ना आज...हां लेकिन धर्म के लिए शील्ड लेकर सामने बहुत लोग आए...as if i m provoking ppl...!!

    जवाब देंहटाएं
  17. मुझे भी यही सारे सवालात झकझोर कर रख देते हैं ....जब से ये सवाल आये दिल में तब से ये झूटापन छोड़ दिया .....में लगातार हनुमान मंदिर जाने वाला बंद अब १ साल से किसी मंदिर नहीं जाता ....जब तक मैं किसी भगवान् को खुद नहीं देख लेता महसूस कर लेता तब तक मानने का सवाल ही पैअदा नहीं होता ...
    मैं आपसे १००% सहमत हूँ

    जवाब देंहटाएं
  18. अच्छा है कि आप हिन्दू हैं और आपको इतने प्रश्न करने की छूट है। सोचिये कि आप अगर दुनिया के सबस् बड़े शांति के रखवाले धर्म की महिला होती तो आपकी गर्दन कब की कट गई होती।

    जवाब देंहटाएं
  19. is sansaar me koi na koi sakti hai jo cheejo ko niyantrit karti hai.. wah adrisay hai .. hum uski kalpana kar sakte hai usse hamara sakhchatkaar sambhav nahi ho sakta ... kan kan me bhagvaan hai... mai aapse sahmat nahi hoo...

    जवाब देंहटाएं
  20. aapka manovaigyanik drishtikon jhalakta hai
    lekin swaal-dr-swaal hi kyooN...???
    ---MUFLIS---

    जवाब देंहटाएं
  21. ha..ha..ha..ha..main bhagvaan bol rahaa hun....main aaunga...jaroor aaunga....pahle tum sab mere naam par aapas men lad-kat kar mar jaao....!!

    जवाब देंहटाएं
  22. bs ji ne bilkul theek kaha ek baar aap ye bhi kahen ki allaha ka koi astitva nahi rasool muhmmed ne apne fayede ke liye islam ki rachna ki phir allha ne chaha to na aap jaise sirf galian dene walon ka astitva hi slamt nahi rehne denge allaha ke bande.jis thali mein khati ho usi mein chhed karti ho hindu dharm mein aap jaise jaichandon ki kami nahi kya hua jo aap ka naam bhi ismein jood gaya waise bhi kahwat hai ki gidadon ke mnaane se haathi nahi mara karte

    जवाब देंहटाएं
  23. धर्म के नाम पर शोषण और पाखंड का अंतहीन सिलसिला चला आ रहा है. आपने वही बात रखी जो आज प्रत्येक तर्कशील व्यक्ति सोचता है. विलंब से प्रतिक्रिया इसलिए-क्योंकि आज ही इस ब्लाग पर पहुंच पाया.

    जवाब देंहटाएं