रविवार, 23 सितंबर 2012

ममता - अड़ियल या जुझारु ??

बेहद साधारण और सस्ती सूत की साड़ी और उससे भी सस्ती हवाई चप्पल पहने राजनीति के गलियारों में हुंकार भरती किसी महिला के बारे में गर पूछा जाए तो बेशक कोई भी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का ही नाम लेगा....ममता भारतीय राजनीति में अपनी एक अलग पहचान रखती हैं....सीधे शब्दों में कहें तो हमारे राजनीतिक धरातल पर इकलौती सिंहनी नज़र आती हैं....सिर्फ गरजती ही नही.... बरसती भी हैं..... लेकिन हालफिल्हाल ये कहा जा रहा है कि वो ग़रीबों की हिमायती और वैश्वीकरण की विरोधी नज़र आना चाहती हैं. सवाल है कि आखिर वजह क्या है....अपना विरोध दर्ज कराना....सरकार से समर्थन वापस लेना.... ये सिर्फ ममता की गरमजोशी है....अस्तित्व को बचाए रखने की एक कवायद है या फिर कहीं गहरे कुछ औऱ भी सिमटा है ....जिसे वाकई कुरेदकर बाहर लाने की जरुरत है.... हालांकि ममता की ये तुनकमिजाजी नहीं सख्तमिजा़जी ही कही जाती है...जिससे भारतीय राजनीति मे शायद ही कोई नावाकिफ हो ....साथ ही ममता कितनी गहरी हैं इसका परिचय भी वो गाहे बगाहे देती ही रहती हैं.......ममता के फौलादी तेवर यकीनन उन्हें उनकी राह पर आगे बढ़ाते ही आए हैं लेकिन साथ ही साथ उनकी शख्सियत के साथ तमाम विशेषण भी जोड़ते रहे हैं.... उनकी शख्सियत का यही पहलू सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर ममता अड़ियल हैं या फिर जुझारू....?? सवाल छोटा है पर गहरा है.... पश्चिम बंगाल के ही राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह ममता की रणनीति का एक हिस्सा है और साथ ही जरुरत भी क्योंकि मां,माटी और मानुष की हिमायती बन राजनीति में एक एक पग भरने वाली ममता अगर अपनी बुनियाद को ही छोड़ राजनीतिक दावंपेच में फंस जाएंगी तो शायद एक दिन वामपंथियों जैसे ही हश्र का शिकार बनेंगी.....बहुत सीधे शब्दों में कहे तो मां..माटी...मानुष का नारा लेकर ही वो अपने विरोधियों यानि वामपंथियों की अपेक्षा जनता के ज्यादा करीब जा सकती है भले ही इसके लिए केद्र की सत्ता में उनके पक्ष में समीकरण बनें या नहीं....और यही वो वजह भी है जिसके चलते उन्होंने खुदरा क्षेत्र में विदेशी पूँजी निवेश के सवाल पर केंद्र से तृणमूल कांगेस का समर्थन वापस ले लिया है....इसे ममता की दूरदर्शिता का ही एक हिस्सा माना जा रहा है...और भले ही इसके लिए उन्हें भविष्य के लिए विकास गामी आर्थिक नीतियों का विरोध ही क्यों ना करना पड़े... दरअसल पश्चिम बंगाल में मिली दमदार जीत ने कहीं ना कहीं ममता के भीतर कहीं गहरे ये बात बैठा दी है कि एकमात्र वोही गरीबों की हिमायती औऱ हितैषी हैं...और इसी वजह से बंगाल की जनता ने उन्हें सिर आंखो पर बैठाया है....जिसके चलते ममता कुछ ऐसे भी फैसले लेती जा रही है..जो उनकी छवि पर हल्की फुल्की किरचें डाल रहे हैं....फिर चाहें वो प्रोफेसर की गिरफ्तारी का मसला हो....कार्टूनिस्ट पर प्रतिबंध लगाने जैसे फैसले हों या फिर निजी चैनल द्वारा आय़ोजित एक कार्यक्रम में सवाल पूछे जाने पर उसका बहिष्कार ही करना क्यो ना हो... लेकिन ये कोई पहला मामला नहीं जब ममता ने ऐसे तेवर दिखाएं हो....इसके पहले भी ममता कई बार गरजीं है....लेकिन हर बार बरसी नहीं....वो कब क्या कहेंगी ...क्या स्टैंड लेंगी ...इस बात का कयास लगाना तो काफी मुश्किल है लेकिन इससे उनके व्यक्तित्व को कम कर आंकना शायद मूर्खता ही कही जाए....इसीलिए जनता दल(यू)अध्यक्ष शरद यादव भी ये कहने से नहीं झिझकते कि जो लोग ममता बनर्जी के कद को फीते से नापने की कोशिश करते हैं वो कतई मूर्ख हैं.... ममता की छवि उनके हर कदम पर मजबूत हुई है....उनके कदम से राजनीतिक तौर पर उन्हे नफा हुआ या नुकसान इसकी परवाह किए बिना वो कई बार एक जुझारू औऱ सशक्त महिला के तौर पर सामने आईं.....शुरुवाती दौर में ही कांग्रेस के तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव के ख़िलाफ़ वो कोलकाता की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करती नजर आईं....जिसका खमियाजा भी उन्होने उठाया...जमीन के हक की लड़ाई में सिंगूर में टाटा की कार फ़ैक्ट्री का उन्होंने जमकर विरोध किया...और पुरजोर तरीके से ललकार भरी....साल 2000 में तेल की क़ीमत में इजाफे के विरोध में तत्कालीन एनडीए सरकार मे उन्होने रेलमंत्री का पद छोड़ने में गुरेज नहीं किया....इतना ही नहीं पश्चिम बंगाल को विशेष आर्थिक पैकेज नहीं मिलता देख उन्होंने बांग्लादेश से तीस्ता नदी पर संधि का समर्थन करने से भी साफ इनकार कर दिया था.... ममता ने हर कदम अपने फौलादी इरादों का मुजाहिरा पेश किया ..... लेकिन कहीं कहीं ममता के तेवरों में उस जुझारु पन को अड़ियल तेवरों में तब्दील होने की सुगबुगाहट भी नजर आ रही है ....जो उनके धुरविरोधी वामपंथियों की राह पर धकेलती नज़र आती है.. कहते हैं कि वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता.....और जो वक्त के साथ नहीं चल पाता वो या तो पीछे छूट जाता है या फिर अस्तित्व की लड़ाई में गुम हो जाता है.... कुछ ऐसा ही हुआ बंगाल में लाल सलाम के वर्चस्व के साथ जो लगातार तीन दशक तक सत्ता में बने रहने के बावजूद आज हाशिए पर जा पहुंचा.... वजह वही अड़ियल -ताना शाही रवैया और वक्त के साथ तालमेल का अभाव ....इसी के चलते लाल सलाम आज बंगाल की धरती के किसी हिस्से पर भी गूंजता सुनाई नहीं देता.... पश्चिम बंगाल के लोगो ने बड़ी उम्मीदों के साथ -परिवोर्तन- का नारा देकर ममता के हाथों अपना भविष्य सौंपा है.... और अब ये ममता के हाथ में है कि वो आम मानुष के हक की लड़ाई को आगे ले जाती हैं या फिर आम मानुष के हाथ में आई सत्ता की हनक की पराकाष्ठा पर पहुंचती हैं।

1 टिप्पणी:

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